कोविड के बहाने
मौज-मस्ती में डूबा सिर्फ दरबार देखिए,
मरघट सी खामोशी हर घर -बार देखिए।
जिन हाथों में होनी थी कागज-कलम,
अपनों के खून से सनी तरबार देखिए।
खाक हुए ख्वाब, मन बँधे जंजीर में,
दुनियाए उल्फत में खौफ जड़ा हीर में।
रोने का गमी मंजर है हर तरफ यारो
आका के झूठे वादे को हर बार देखिए।
रोनी सी सूूरत लिए शौक से रोइये,
बिगड़ा मुकद्दर है जिल्लत ही ढोइये।
गुजर रहे हैं लोग अब कोविड के बहाने,
सहमे-ठिठके आहट का गुबार देखिए।
शौक से हर शख्स फिक्रे इंकलाबी है,
हर आह उफ! में हमारी नाकामयाबी है।
अब आ गया वक्त कोई ढूढ़ो साहिल,
मत चुने सियासतदां का तकरार देखिए।
बुलंद कर सीने को मुकद्दर आह नहीं है,
रहमो-करम पे छोड़ दें सही राह नहीं है।
ताल ठोक आका-हलक से निवाले छीन,
जुल्मी से डट जाँय फिर बहार देखिए।
–डा. सुरेन्द्र कुमार जायसवाल
कटिहार ,बिहार ।